Monday, 16 September 2013

जन को जगाओ, बच्चों को बचाओ


भारत में केंद्र और राज्य सरकार के ढेरों ऐसी योजनाएं हैं जिसके माध्यम से सरकारी अमला बच्चों के बेहतर भविष्य का दावा करता हैं, लेकिन हालात यह है कि ऐसी योजनाएं लाखों मासूम तक पहुंचने से पहले भ्रष्टाचार का ग्रास बन जाती है। ये भ्रष्टाचारी कभी यह नहीं सोचते हैं कि जिनके हिस्से की राशि वे भ्रष्टाचार के रूप में लेकर कर अपने घर-परिवार में बच्चों को ऐसो आराम उपलब्ध करा रहे हैं, दरअसल उसकी कीमत किसी दूसरे के गोद के मासूम के मुंह में जाने वाला निवाला है, स्वास्थ्य सुविधाओं समेत अन्य दूसरी योजनाओं  के रूप में उनकी जिंदगी है।
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संजय स्वदेश 




संयुक्त राष्ट्र ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि उसके प्रयासों से पिछले दो दशक में दुनिया भर के करीब नौ लाख बच्चों की जिंदगियां बचाई जा सकी हैं लेकिन 2015 तक इस मृत्यु दर में दो तिहाई की कमी का लक्ष्य फिलहाल पूरा होता नहीं दिखता। रिपोर्ट खुलासा करती है कि 1990 में जहां विभिन्न कारणों से दुनिया भर में पांच साल तक की आयु के एक करोड़ 26 लाख बच्चे असमय काल के ग्रास बन गए। वहीं 2012 में यह आंकड़ा 66 लाख पर ही रुक गया।
रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में पांच साल से कम उम्र के आधे से अधिक बच्चों की मौत अकेले भारत, चीन, कांगो, पाकिस्तान और नाइजीरिया में होती है। बच्चों की इस असामयिक मौत के लिए निमोनिया, मलेरिया और दस्त के साथ कुपोषण को बड़ी वजह बताया गया है। इस अभियान का सबसे सुखद, सराहनीय और उल्लेखनीय पहलू यह है कि बांग्लादेश, इथोपिया, नेपाल, लाइबेरिया, मलावी और तंजानिया जैसे गरीब देश भरसक कोशिश करते हुए 1990 के बाद से अब तक अपने यहां बाल मृत्यु दर में दो तिहाई या उससे अधिक की कमी का लक्ष्य हासिल कर प्रेरक बन गए हैं। ए गरीब देश भारत जैसे विकासोन्मुख देशों के लिए बड़ी प्रेरणा कहे जा सकते हैं जहां दिन-ब-दिन बढ़Þती जनसंख्या के साथ बाल मृत्यु दर सबसे भयावह समस्या बनी हुई है। यूनिसेफ की 2012 की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2011 में वैश्विक स्तर पर इस आयु वर्ग के प्रतिदिन मरने वाले 19000 बच्चों में से करीब चौथाई भारत में मृत्यु का ग्रास बने। यानी हर दिन करीब चार हजार बच्चे मौत के मुंह में समा गए। बाल विकास के नाम पर तमाम सरकारी और गैर-सरकारी योजनाओं की मौजूदगी के बावजूद अपने यहां दुनिया के बाकी देशों की तुलना में सबसे ज्यादा मौतें होना बहुत त्रासद और विचारणीय है। अपने यहां बच्चों की असामयिक मौत के पीछे गरीबी, कुपोषण और अशिक्षा सबसे बड़े कारण माने जाते हैं और इसके लिए अंतत: हमारा शासन तंत्र जिम्मेदार है।
भारत में केंद्र और राज्य सरकार के ढेरों ऐसी योजनाएं हैं जिसके माध्यम से सरकारी अमला बच्चों के बेहतर भविष्य का दावा करता हैं, लेकिन हालात यह है कि ऐसी योजनाएं लाखों मासूम तक पहुंचने से पहले भ्रष्टाचार का ग्रास बन जाती है। ये भ्रष्टाचारी कभी यह नहीं सोचते हैं कि जिनके हिस्से की राशि वे भ्रष्टाचार के रूप में लेकर कर अपने घर-परिवार में बच्चों को ऐसो आराम उपलब्ध करा रहे हैं, दरअसल उसकी कीमत किसी दूसरे के गोद के मासूम के मुंह में जाने वाला निवाला है, स्वास्थ्य सुविधाओं समेत अन्य दूसरी योजनाओं  के रूप में उनकी जिंदगी है।
मासूम बच्चों के लालन-पालन, स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए अनुकूल माहौल बनाने की जिम्मेदारी केवल केंद्र सरकार पर नहीं हैं। केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकार के कंधे पर भी यही बोझ है। आज के मासूम बच्चे ही कल के जिम्मेदार नागरिक हैंÑ,  जैसा वे वातावरण पाकर बड़े होंगे वैसा ही आने वाले भारत का भविष्य होगा। आज देश में छोटे-बड़े क्षेत्रों में कई क्रूर इंसान मिल जाएंगे। वे असामाजिक तत्वों के दायरे में आएंगे। दरअसल ऐसी प्रवृत्ति उनके बचपन में मिले वातावरण के कारण ही विकसित हुए। समाज की भी ऐसी जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने बीच के भूखे-नंगे और किसी बीमारी से पीड़ित बच्चों की सुध ले। भविष्य संवारने की जिम्मेदारी केवल सरकार और एक परिवार विशेष की नहीं होती है। समाज को इस दिशा के सोचना बेहद जरूरी है कि आज के नौनिहालों के मन में यदि नकारात्मक प्रवृत्ति घर करती है और वे बड़े होकर असामाजिक तत्वों हो जाते हैं। फिर वे उसी समाज को दर्द देंगे। समाजिक-सरकारी उपेक्षा से में पल कर तैयार होने वाले नागरिक इस बात की गारंटी नहीं दिलाते हैं कि वे अपने बचपन में समाजिक और सरकारी  उपेक्षा के बदले समाज और देश के साथ कुछ अच्छा करेंगे। राष्टÑीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चलाई जाने वाली योजनाओं की सफलता की रफ्तार बहुत धीमे हैं। क्योंकि इन योजनाओं में समाज का उचित सहयोग नहीं मिल पता है। समाज में माहौल तैयार करने की प्रक्रिया एक वाहन के दो  पहिए की तरह है। एक पहिया योजनाओं के क्रियान्वयन करने वाले एजेंसियों हैं तो दूसरा समाज। यह सामूहिक जिम्मेदारी है।

Sunday, 8 September 2013

samachar visfot vikash chhattisi.

samachar visphot august issu spacail issue on vikash chattisi based n 36 development story in chhattishgarh