Wednesday 2 January 2013

Tuesday 1 January 2013

सांप, बिच्छू, मेढ़क के जहर इज्जत की हिफाजत

आत्मरक्षा
नागकन्या, नागलोक आदि की कहानियां पुराणों, लोकगाथाओं में भरी पड़ी हैं। इनका ऐतिहासिक प्रमाण मिले न मिले, झारखंड के संथाल परगना इलाके में तो आज भी नाग कन्याएं निवास करती हैं। इन संथाली आदिवासी बालाओं को यहां नाग कन्या के तौर पर ही माना जाता है। ये बालाएं अपने दुश्मनों के लिए ठीक उसी तरह खतरनाक हैं जैसे की चोट खायी हुई नागिन।
झारखंड के संथाल परगना इलाके आदिवासी लड़कियां अपने आबरु की हिफाजत के लिए खतरनाक जहर रखती है। इनके पास ऐसा जहर है जो जहरीले सांप, जहरीले बिच्छू और जहरीले मेंढ़क से निकाले गये हैं। इस जहर में स्थानीय लोहार तीर और छोटे नस्तर को बड़ी बारीकी से पिरोते हैं। ताकि ऐसे नस्तर में परत दर परत जहर पूरी तरह समा जाये। ऐसा करने पर ये नस्तर और तीर इतने जहरीले हो जाते हैं कि जिस्म पर लगते ही पूरा शरीर पंगु हो जाता है।
हैरत की बात यह है कि आदिवासी ऐसे जहर को कहीं बाहर से नहीं मंगवाते बल्कि खुद जंगलों में ही जहरीले सांपों का शिकार कर तैयार करते हैं। आदिवासियों का सबसे पसंदीदा सांप करैत, गेहुमन और खरीश है जो आज भी इन आदिवासी इलाको में खूब मिलता है। वैसे कभी-कभी सपेरों की सहायता से भी ये लोग जहर निकालते हैं। इलाके के लोग बताते हैं कि सांप के जहर को गर्म कर इसे बनाया जाता है। यह हाथ से छूने पर खतरनाक है। जहरीले तीर का इस्तेमाल आदिवासी जंगल में रहने वाले खतरनाक जानवरों से अपने आपको बचाने के लिए सदियों से करते रहे हैं। यहां एक नन्हा नस्तर भी इनके पास रहता है। यह जितना छोटा है उतना ही खतरनाक भी। ये नस्तर आदिवासी लड़कियां अपने पास रखती है। ताकि किसी भी तरह की विपदा में वो इसका इस्तेमाल कर सकें।
सुबह होते ही इन आदिवासी लड़कियों का अधिकतर समय जंगलों में ही गुजरता है। लकड़ी काटने से लेकर पत्ते चुनने तक में। ऐसे में इन सुदूर जंगलों में कब इनकी अस्मत खतरे में पड़ जाये कहा नहीं जा सकता है। आदिवासी लड़की कामिनी बेसरा कहती है कि जब वे जंगल जाती हैं तो उनके पास इस छोटे नस्तर रहने से डर नहीं लगता। वो अपने को हथियारों से लैस समझती हैं। ऐसे में वो इसी नस्तर से अपना बचाव करती हैं। आम तौर पर ये आदिवासी लड़कियां इस नस्तर को या तो कमर में छिपा कर रखती हैं या फिर ताबीज की तरह ही अपने बाजु या गले में बांध कर रखती है। ताकि किसी भी समय निकालने में आसानी हो। ये नस्तर पर चढ़ा खतरनाक जहर का एक वार ही पूरे शरीर को शिथिल कर देने के लिए काफी है। यही वजह है की झारखंड के संथाल परगना में संथाली बालाएं नाग कन्या बनी फिरती हैं। नि:संकोच जंगलों में घूमने वाली ये लड़कियां थी उसे तरह सरसराती हुई जंगलों को छानती हैं जैसे की मस्त नागिन हों। ऐसे में किसी की मजाल नहीं कि कोई इनके पास आने की हिमाकत कर सके।
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देह शोषण को लाल सलाम

कभी सामंतवादी व्यवस्था के खिलाफ युद्ध के नाम पर शुरू हुआ नक्सली आंदोलन अपने ही संगठन में नारी देह के भंवर में फंस गया है। सामंतों के महिलाओं पर यौन उत्पीड़न की जो घटनाएं पहले सुनी जाती थी, आज वैसा ही कुछ नक्सली संगठन में शामिल महिलाओं के साथ हो रहा है। वे अपने ही साथियों की हवस का शिकार हो रही है। या यूं कहें तो नक्सली आंदोलन के कार्यकर्ता हवस की आग में जल कर न केवल अपने ही महिला साथियों से जबरदस्ती सेक्स की भूख मिटा रहे है। बल्कि आदिवासी इलाकों के लड़कियों का भी जबरन देह शोषण कर रहे हैं। महिलाएं मजबूर है, न विरोध कर पाती हैं और न हीं संगठन छोड़ समाज की मुख्यधारा से जुड़ने की हिम्मत जुटा पा रही है।
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आदिवासी बच्चियों का यौन शोषण कर रहे नक्सली
-सुरक्षाकर्मियों को फांसने के लिए किया स्वीट-प्वाइजन का गठन

संजय स्वदेश

छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले की पुलिस ने मद्देड़ थाना क्षेत्र में 11 और 12 वर्ष की दो ऐसी नाबालिग लड़कियों का मामला दर्ज किया, जिसकी अस्मत के साथ नक्सलियों ने खिलवाड़ किया। दोनों लड़कियों ने नक्सली सदस्य कुड़ियम गुज्जा, नागेश और शिवाजी पर शारीरिक शोषण करने का आरोप लगाया है। ये लड़कियों पुलिस को तब हाथ लगी जब जिला पुलिस बल और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) का सयुंक्त दल मद्देड़ क्षेत्र में गस्त और खोजी अभियान के लिए रवाना हुआ था। क्षेत्र में गांव से लगे जंगल में पुलिस दल को ये दो नाबालिक लड़कियां मिली। पुलिस द्वारा पूछताछ पर लड़कियों ने बताया कि नक्सली मुड़ियम गुज्जा और उसके साथी उन्हें जबरदस्ती अपने साथ ले गये थे तथा जंगल में कुड़ियम गुज्जा, नागेश और शिवाजी ने जबरन उनकी आबरु को तार-तार किया। दोनों लड़कियों ने यह भी खुलासा किया कि उनके देह शोषण का सिलसिला काफी समय से चल रहा था। नक्सली उन्हें गांव आकर ले जाते हैं। उनसे काम करवाते है तथा डरा-धमका कर जबरन शारीरिक संबंध बनाते हैं। परिवार वालों के द्वारा मना करने पर उन्हें जान से मार डालने अथवा गांव से निकाल देने की धमकैी देते हैं। लड़कियों ने बताया कि वे अपने गांव वापस नहीं जाना चाहती हैं तथा वे कभी स्कूल नहीं गई है अब आश्रम में रहकर पढ़ना चाहती है। जिला के पुलिस अधीक्षक प्रशांत अग्रवावल कहते हैं कि लड़कियों द्वारा इसकी जानकारी देने के बाद पुलिस दल ने उन्हें सुरक्षित बीजापुर पहुंचाया तथा उनकी रिपोर्ट पर दो नवंबर को नक्सलियोंं के खिलाफ मामला दर्ज किया गया। दोनों लड़कियों की  मेडिकल जांच में उनके शारीरिक शोषण किए जाने की पुष्टि हुई। जिला पुलिस अधीक्षक ने बताया कि पूछताछ के दौरान लड़कियोंं ने जानकारी दी है कि उनके जैसी और भी कई लड़कियां हैं जिन्हें गांव से नक्सली अगवा कर अपने साथ ले जाते हैं तथा उनका शारीरिक शोषण करते हैं। लड़कियोंं के माता पिता द्वारा इसका विरोध किये जाने पर उन्हें गांव से बाहर निकाल देने की धमकी देते हैं। नक्सलियों ने गांव वालों को लड़कियों को पढ़ाने के लिए मना किया हुआ है। फिलहाल पुलिस ने दोनों लड़कियों के पुर्नवास और शिक्षा के लिए समुचित व्यवस्था कर रही है।
मासूम लड़कियों के यौन शोषण की यह हकीकत तब सामने आई जब पुलिस ने उन्हें पकड़ा। छत्तीसगढ़ के नक्सली इलाकों की हकीकत यह है कि नक्सल इलाकों में आदिवासियों की बेटियां नहीं पढ़ पा रहीं। घरों में कैद इन नन्ही जानों पर नक्सलियों का कहर बरप रहा है। नक्सली न केवल इनका यौन शोषण कर रहे हैं बल्कि इन लड़कियों का इस्तेमाल नक्सली क्षेत्र में तैनात सुरक्षाकर्मियों को फंसाने के लिए भी प्रशिक्षित कर रहे हैं।
केंद्रीय गृहमंत्रालय को मिली सूचना के अनुसार नक्सली 12 से 16 साल की लड़कियों का इस्तेमाल जहां सुरक्षाकर्मियोंं को फंसाने के लिए प्रशिक्षित कर रहे हैं वहीं नक्सली नेता इनका यौन शोषण भी कर रहे हैं। लड़कियों को नहीं भेजने वाले परिवार को जान से मारने की धमकी जा रही है। यही कारण है कि नक्सली बारी-बारी से अपनी भर्तियों में लड़कों के अलावा बाल-संघम में लड़कियों को भी सशस्त्र प्रशिक्षण दे रहे हैं। गृह मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार गोंडी भाषा में मिले कुछ कागजातों के हवाले से मिली जानकारी में यह साफ है कि नक्सलियों ने कुछ लड़कियों को खास तरह से प्रशिक्षित किया है ताकि समय पर वे सुरक्षाकर्मियों को उनके ही जाल में फंसा सकें। गरीब आदिवासी लड़कियों के यौन शोषण की जानकारी पहले झारखंड और पश्चिम बंगाल की महिला नक्सली नेताओं ने दी थी अब छत्तीसगढ़ के बीहड़ में भी स्वीट-प्वाइजन के नाम से कुछ लड़कियों की टीम तैयार की गई है। सियासी रूप से बेहद संवेदनशील माने जाने वाले इस मुद्दे पर खुल कर फिलहाल कोई भी बोलने को तैयार नहीं लेकिन नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर सभी नेता इस बात को मानते हैं गरीब लड़कियों के देह से नक्सली लंबे समय से जबरदस्ती करते रहे हैं। स्थानीय जिला पंचायत और ग्रामीणों के स्तर पर देह शोषण का सच कई बार सामने आ चुका है।
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फ्री सेक्स के चंगुल में आंदोलन

अन्याय के प्रति खिलाफत के नाम पर अपने हिंसा को जायज ठहराने वाले नक्सलियों के कारनामें आए दिन सुर्खियों में रहते हैं। लेकिन एक सच यह भी है कि पिछले कुछ वर्षों में नक्सली क्षेत्रों से पुलिस द्वारा बरामद नक्सलियों के कागजात और कुछ पूर्व की घटनाएं यह साबित करती हैं कि नक्सल आंदोलन सेक्स के चंगुल में फंसा हुआ है।
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किसान आत्महत्या के लिए हमेशा सुिखर्यों में रहने वाले विदर्भ के गडचिरौली जिले में फरवरी, 2009 में नक्सलियों को एक बहुत बड़ा हमला हुआ था। 15 पुलिसकमिर्यों को नक्सलियों ने बेरहमी से तड़पा तड़पा कर मारा था और खुद सही सलामत भागने में सफल हो गये थे। पर बाद में पुलिस ने मौके से और जंगलों की गहन तलाशी में नक्सलियों का कुछ समान बरामद किया था।  भागते वक्त नक्सली बड़ी मात्रा में अपना साहित्य और दूसरा सामान छोड़ गए थे। इससे नक्सलियों से जुड़ी कुछ सनसनीखेज बातों का खुलासा हुआ। जो कागजात उसे प्राप्त हुए हैं उसमें कुछ कागजात ऐसे भी थे  जो नक्सलियों के शीर्ष नेताओं द्वारा संगठन में बढ़ रहे मुक्त सेक्स चिंता को साफ बयान कर रह थे।  इसका मतलब है कि नक्सली संगठन के अंदर भी इस मुक्त यौन व्यवहार को लेकर चिंता व्याप्त है।
वर्ष 2011 में भी बिहार और झारखंड में आत्मसमर्पण करने वाली महिला नक्सलियों ने यह स्वीकार किया कि उनके साथ कई पुरुष नक्सलियों ने शारीरिक संबंध बनाएं। झारखंड पुलिस ने नक्सली क्षेत्रों से गर्भनिरोधक सैस पॉवर बढ़ाने वाली गोलियां, कडोम आदि भारी मात्रा में बरामद किये थे।
जानकार कहते हैं कि नक्सली नीति निर्धारक अपनी लड़ाई को जनआंदोलन का व्यापक रूप देना चाहते हैं। लेकिन इसके लिए संगठन में 40 प्रतिशत महिलाओं का होना आवश्यक है। इसके लिए बड़ी संख्या में महिलाओं को जोड़ा भी गया था। प्रशिक्षण दिया गया। कई हमलों पर महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही। यहां तक कि गड़चिरौली के हमले में नक्सली दल का नेतत्व महिला कमांडर ने किया था। पर अफसोस हर क्षेत्र की अंदरूनी हकीकत की तरह तथाकथित जनआंदोलनों के अंदर से भी यौन कुंठाओं की हकीकत अब बाहर निकल रही है। ऐसा नहीं है कि नक्सल आंदोलन से जुड़े शीर्ष लोग इससे अनजान हैं। नक्सली नेता इस बात से चिंतित है जिसकी तस्दीक गढ़चिरौली घटना के बाद बरामद कागजातों से होती है लेकिन यह सच भी सामने आ रहा है कि नक्सल आंदोलन से जुड़कर महिलाएं पछता रही है। संगठन से मोह भंग हो रहा होगा। तभी तो नक्सली नेताओं ने कड़ी चेतावनी देते हुए पुरुष साथियों को महिलाओं से दूरी बनाये रखने की चेतावनी दी है। संयम के नये नियम बने है जिन्हें नहीं मानने पर दंड देने का भी फरमान जारी किया गया है।
इस बात की संभावना से इनकार नहीं की जा सकती है कि नक्सलियों में एड्स की स्थिति गंभीर हो रही है। शीर्ष नक्सल नेता जानते हैं कि सेक्स की लोलुपता में फंस कर संगठन के सदस्य खुद को कमजोर कर रहे है। एचआईवी से ग्रस्त हो रहे है। जंगल में भागते छिपते जांच व इलाज मुिश्कल होगा। यह हकीकत बाहर जाएगी तो संगठन में 40 प्रतिशत महिलाओं को जोड़ने का लक्ष्य कभी पूरा नहीं होगा और लड़ाई कभी जनआंदोलन का रूप नहीं ले सकेगी। दिसंबर 2006 में भी यह खबर आई थी कि विदर्भ के गढ़चिरौली जिले में ही जब नक्सली शिविर पर पुलिस ने छापा मारा तो वहां कंडोम, सेक्स क्षमता बढ़ाने वाली दवाएं व अश्लील फिल्म की सीडी आदि मिली थी। करीब पांच वर्ष पहले एक और खबर आई थी। इंद्रा उर्फ पुष्पकला नाम की एक नक्सली महिला ने पुलिस के सामने समर्पण किया था। समर्पण के बाद उसने पुलिस को बताया कि उसके साथ उसके उपकमांडर ने कई बार बलात्कार किया। उसने यह भी बताया कि संगठन में हर महिला कम से कम चार-पांच नक्सलियों के हवस की भूख मिटाने की वस्तु की तरह है। इससे कई महिलाएं गंभीर यौन रोगों से पीड़ित हो जाती हैं। 24 वर्र्षीय सोनू नाम की और नक्सली ने पुलिस को समपर्ण किया और कुछ ऐसी ही कहानी बताई।
उसने पुलिस को बताया कि बाली उम्र में ह ीवह नक्सली आंदोलन में शामिल हो गई। तब उसे इस बात का अंदाजा नहीं था कि यहां उसके अपने ही आबरू तार-तार करेंगे। उसे नक्सली कमांडर से प्यार हुआ। शादी की। पर उसके बुरे दिन तब शुरू हुए जब उसका नक्सली पति पुलिस मुठभेड़ में मारा गया। इसके बाद दूसरे साथियों की केवल निगाहों तक नजर आने वाली यौन लोलुपता हकीकत में सामने आ गई। कई नक्सलियों ने उसके साथ हवस की भूख मिटाई। आखिर सोनू को वहां से भागना पड़ा। पुलिस को समर्पित किया। सोनू ने भी पुलिस को यही बताया था कि संगठन की हर महिला तीन-चार नक्सलियों की की हवस की शिकार होती है।
कुछ वर्ष पहले पुलिस ने सुशीला नाम की एक नक्सली सिपाही को पकड़ा था। जब उसे गिरफ्तार किया गया तब वह गंभीर यौन रोग सिफलिस से पीड़ित थी। जानकार कहते हैं कि नक्सली संगठन में शामिल हर महिला की ऐसी ही दर्द भरी कहानी है। उनके मन में संगठन में आने का पछतावा है। पर क्या करें उनके लिए स्थिति सांप छूछूंदर की तरह है। पुलिस को समर्पण करती हैं तो शेष उम्र जेल में बीतने का खतरा है और संगठन में बगावत किया तो उसकी सजा जेल से ज्यादा भयावह होगी। गढ़चिरौली की घटना में पुलिसकमिर्यों को तड़पा तड़पा कर बेरहमी से मारने वाली नक्सली कमाण्डर भले ही महिला थी लेकिन न जाने कितनी महिलाएं हवस का शिकार होकर संगठन में हर दिन खुद तड़प-तड़प कर जिंदा मौत का शिकार हो रही हैं।
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प्रेम की सजा पहले नसबंदी तब शादी
नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ में जंगलों की खाक छान रहे नक्सलियों को प्रेम की भी सजा दी जाती है। नक्सली यहां प्रेम तो कर सकते हैं, लेकिन अपना घर नहीं बसा सकते हैं। कांकेर जिले में आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली कमांडरों के मुताबिक शादी से पहले ही उनकी जबरदस्ती नसबंदी कर दी जाती है। पिछले दिनों छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों ने नक्सली नेताओं द्वारा उनके साथ किए जा रहे दुर्व्यहार के बारे में विस्तार से बताया। आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली सदस्यों पूर्व बस्तर डिविजन कमेटी के सदस्य सुनील कुमार मतलाम, उसकी पत्नी और कोर कमेटी की कमांडर जैनी उर्फ जयंती, परतापुर क्षेत्र के जन मीलिशिया कमांडर रामदास, उनकी पत्नी पानीडोबिर (कोयलीबेड़ा) एलओएस की डिप्टी कमांडर सुशीला,  सीतापुर (कोयलीबेड़ा) एलओएस के कमांडर जयलाल, उसकी पत्नी सीतापुर एलओएस की सदस्या आसमानी उर्फ सनाय और रावघाट में सक्रिय प्लाटून नम्बर 25 की सदस्य सामो मंडावी ने अपनी आपबीती सुनाई। उन्होंने बताया कि जंगल में उनके साथ आंध्रप्रदेश के नक्सली नेता बुरा बर्ताव तो करते ही है साथ ही साथ उन्हें प्रेम करने की सजा भी दी जाती है। सुनील (31 वर्ष) ने बताया कि तीन नक्सलियों ने अपनी पत्नी के साथ आत्मसमर्पण किया है तथा तीनों पुरुषों की शादी से पहले ही नसबंदी कर दी गई है।  वह कांकेर जिले के आमाबेड़ा थाना क्षेत्र के फूफगांव का रहने वाला है। जब वह 17 साल का था तब नक्सली उसके गांव पहुंचे और उसे अपने साथ लेकर चले गए। नक्सलियों ने सुशील को प्रशिक्षण दिया और वह सक्रिय नक्सली सदस्य बन गया। इस दौरान वह कई वारदातों में शामिल रहा जिसमें कई पुलिसकर्मी शहीद भी हुए। सुनील ने बताया कि जब वह नक्सली सदस्य के रूप में काम कर रहा था तब उसे चेतना नाट्य मंडल की कमांडर जैनी उर्फ जयंती कुरोटी के साथ काम करने का मौका मिला। जैनी से उसकी जान पहचान हुई और बाद में यह जान पहचान प्रेम में बदल गई। जब सुनील और जैनी ने शादी कर अपना परिवार बसाना चाहा तब नक्सली नेताओं ने उसके प्रेम को स्वीकार कर लिया, लेकिन उसे घर बसाने की इजाजत नहीं दी गई। नक्सली नेताओं ने कहा कि जब सुनील नसबंदी करवा लेगा तभी उसे जैनी के साथ शादी करने की इजाजत दी जाएगी। जैनी को पाने के लिए सुनील ने ऐसा ही किया। जंगल में ही उसकी नसबंदी कर दी गई। अब सुनील मुख्यधारा में शामिल होकर अच्छी जिंदगी जीना चाहता है। वह चाहता है कि वह फिर से आपरेशन करवाए तथा अपना घर बसा सके।
यही स्थिति रामदास और जयलाल की भी है। उन्हें भी प्रेम करने की इजाजत तो दी गई लेकिन जब शादी की बारी आई तब उनकी नसबंदी कर दी गई। सुनील ने बताया कि यह बर्ताव उन सभी नक्सलियों के साथ होता है जिन्हें जंगल में किसी महिला नक्सली से प्रेम हो जाता है और वह उससे शादी करना चाहता है। नक्सलियों की यहां शादी केवल नसबंदी कराने की शर्त पर ही हो पाती है। यदि कोई सदस्य इससे मना करता है तब पहले उसे खूब प्रताड़ित किया जाता है और जबरदस्ती उसकी नसबंदी कर दी जाती है। उसने बताया कि जंगल में नसबंदी करने के लिए पश्चिम बंगाल से डाक्टरों को यहां बुलाया जाता है। इस आपरेशन के बाद कई नक्सली गंभीर रूप से बीमार भी हो जाते हैं। यहां कई नक्सली ऐसे हैं जिनकी जबरदस्ती नसबंदी कर दी गई है और वे सामने आने से डरते हैं।
आंदोलन खतरे में पड़ने का भय : सुनील ने बताया कि नक्सली नेताओं का मानना है कि एक बार शादी हो गई और बाल बच्चे हुए तब नक्सली सदस्य उस बच्चे के अच्छे लालन पालन के लिए घर लौट सकते हैं और उनका आंदोलन खतरे में पड़ जाएगा। इससे बचने के लिए वह पहले पुरुषों की नसबंदी कर देते हैं। पुरुषों की ही नसबंदी करने के कारणों के बारे में पूछने पर सुनील ने बताया कि महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों की नसबंदी आसान होती है। कांकेर के पुलिस अधीक्षक राहुल भगत का कहना है कि पुलिस का को इस बात की जानकारी लगातार मिल रही थी कि जंगल में पुरुष नक्सलियों की जबरदस्ती नसबंदी कर दी जाती है। यदि नक्सली सदस्य साधारण जिंदगी जीने और बच्चे के लिए नसबंदी हटाना चाहते हैं तब पुलिस उनकी पूरी मदद करेगी और अपने खर्च पर उनका आपरेशन करवाएगी।
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पैकेज युद्ध में सरकार पर भारी नक्सली!

नक्सलियों को हिंसा से दूर रहकर मुख्य धारा में जोड़ने की सरकारी कवायद पर नक्सली नेताओं की दिमागी कसरत भारी पड़ सकती है। सरकार ने सरेंडर करने वाले नक्सलियों के लिए जो पैकेज तैयार किए हैं, उससे भारी पैकेज नक्सली नेताओं ने उन युवाओं के लिए बनाए हैं जो उनके साथ आएंगे। निश्चित रूप से इस पैकेज वार में कम से कम बेईमान बाबुओं में ईमानदार कामरेड भारी पड़ सकते हैं।

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रायपुर। छत्तीसगढ़ में नक्सलियों को हिंसा से दूर रहकर मुख्य धारा में जोड़ने की सरकारी कवायद पर नक्सली नेताओं की दिमागी कसरत भारी पड़ सकती है। सरकार ने सरेंडर करने वाले नक्सलियों के लिए जो पैकेज तैयार किए हैं, उससे भारी पैकेज नक्सली नेताओं ने उन युवाओं के लिए बनाए हैं जो उनके साथ आएंगे। इस पैकेज युद्ध में नक्सली भारी भी हैं। सरकार ने पुनर्वास नीति के तहत सरेंडर करने वाले नक्सलियों के लिए अच्छा-खासा पैकेज तैयार किया है। इसके परिणाम भी सामने आ रहे हैं, लेकिनआशातीत सफलता अभी नहीं मिली है। इस बीच बिखराव जैसे हालात में पहुंच चुके नक्सलियों ने संगठन को मजबूत करने के लिए अपना पैकेज तैयार कर लिया है। सूत्रों का कहना है कि सीधे-सादे युवक-युवतियों को नक्सली पैकेज के जाल में फंसाकर हिंसा की राह पर डालने की तैयारी कर चुके हैं। पैकेज भी आकर्षक बनाया गया है। इसमें सरकार की तरह जमीन देने का वादा नहीं किया गया है, लेकिन मोटी राशि देने का भरोसा जरूर दिया गया है। खबर है, इसका खुलासा बस्तर इलाके में पकड़े गए कुछ संदिग्ध लोगों ने पूछताछ में की है। यह भी पता चला है कि माओवादी नेता नए जिलों में कमांडर की नियुक्ति की कवायद भी कर रहे हैं। साथियों के लगातार पकड़े जाने और मारे जाने से सतर्क हुए नक्सली संगठन को मजबूत करने साम-दाम, दंड भेद की नीति पर अमल कर रहे हैं।
सक्रियता का सुराग मिला
नक्सल अभियान से जुड़े रहे छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक रामनिवास कहते हैं कि खुफिया दस्ते और सर्चिंग के दौरान टीम को नक्सलियों की बैठक और नए लोगों को जोड़ने संबंधी प्रमाण मिले हैं। बस्तर क्षेत्र से अधिकांश युवक-युवतियों के गायब होने जानकारी उन्हें भी है। बहुत से गांवों के खाली हो जाने से यह लगता है कि नक्सली बलपूर्वक अथवा बहला-फुसला कर स्थानीय लोगों को साथ ले गए। स्थानीय युवकों के गायब होने और परिजनों का सुराग नहीं मिलने से संदेह गहराता है।
सरकार का आॅफर
-बिना हथियार सरेंडर करने पर 1.60 लाख रुपए
-हथियार समेत सरेंडर करने पर 4.60 लाख रुपए
- हर माह दो हजार रुपए नगद राशि
-खेती के लिए जमीन भी दी जाएगी
नक्सलियों का लुभावना पैकेज
-साथ आए तो परिवार को पूरा सरंक्षण
-जीवन-यापन की पूरी जिम्मेदारी लेंगे
-7 से 10 लाख रुपए की आर्थिक मदद का वादा
- पकड़े गए तो परिवार की देखरेख
- कानूनी खर्च से लेकर इलाज तक का खर्च
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