Thursday, 1 December 2011

samachar visfot decembar 2011

रू-ब-रू
हम बेरोजगार बाप पैदा कर रहे हैं
इनके पिता तीन बार सूबे के मुख्यमंत्री रहे हैं। इनकी पढ़ाई विलायत में हुई है, लेकिन इन दिनों उत्तर प्रदेश में इनकी सहज उपलब्धता और साइकिल की सवारी उन्हें दूसरे हाई प्रोफाइल नेता पुत्रों से अलग कर रही है। हमेशा मुस्कराने और खिलखिलाने वाला उनका चेहरा कार्यकतार्ओं में जोश भर देता है। प्रदेश में सबसे पहले चुनावी यात्रा का बिगुल बजाने वाले मुलायम सिंह यादव के पुत्र अखिलेश यादव से हुई अनिल पांडेय की लंबी बातचीत के कुछ अंश।
प्रदेश में कई यात्राएं निकल रही हैं। आपकी क्रांति रथ यात्रा किस लिए है?
बदलाव के लिए। सपा ने जब-जब क्रांति रथ यात्रा निकाली है, तब-तब उत्तर प्रदेश की सत्ता में बदलाव हुआ है। नेताजी एक बार रथ लेकर निकले थे, तो प्रदेश में हमारी सरकार बनी थी। इससे पहले एक बार मैं भी रथ लेकर निकला था, तब भी समाजवादियों की सरकार बनी थी। इस बार फिर मैं रथ लेकर निकला हूं, तो इस बार भी हमारी सरकार बनेगी।
लेकिन, चुनावी पंडित तो भविष्यवाणी कर रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में त्रिशंकु विधानसभा  बन रही है!
यह आकलन गलत है। हमें पूर्ण बहुमत मिलेगा। अगर आप हाल के चुनावों का ट्रेंड देखें, तो पाएंगे कि जनता पूर्ण बहुमत के साथ ही किसी दल को सत्ता सौंप रही है. ममता हों या नितीश, सभी को जनता ने पूर्ण बहुमत दिया है। जनता, सपा को भी पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने का मौका देगी।

आखिर जनता सपा को ही क्यों वोट देगी?
सपा ही अकेली पार्टी है, जिसने बसपा सरकार के भ्रष्टाचार और जन विरोधी नीतियों के खिलाफ साढ़े चार साल तक संघर्ष किया है। चाहे मंहगाई का मामला हो या भ्रष्टाचार का, जबरन किसानों की जमीन छीनने की बात हो या पत्थर की मूर्तियां लगाने की...हमारे कार्यकर्ताओं ने इसका विरोध किया तो उन पर लाठियां बरसाई गईं, उन्हें जेल भेजा गया। बीएसपी की पुलिस ने हमारे कार्यकतार्ओं के घरों पर छापे मारे। वे नहीं मिले तो उनके बूढ़े मां-बाप और परिवार के लोगों को अपमानित किया और जेल में डाल दिया। राज्य की जनता बसपा शासन की तुलना सपा के शासन से कर रही है, तो उस लगने लगा है कि सपा के शासन में राज्य का विकास हुआ, बिजली और सड़कों पर काम हुआ, किसानों के लिए सस्ती खाद मुहैया कराई गई। उनके गन्ने को सही मूल्य मिले, इसके लिए कई चीनी मिलें खुलवाई गईं, कानून व्यवस्था दुरुस्त की गई। यही वजह है कि जनता सपा को एक बार फिर विकल्प के रूप में देखने लगी है।
अगर आप अपनी सरकार के कामकाज को आधार बना रहे हैं, तो जनता ने आपको सत्ता से बेदखल क्यों किया?
अगर वोट प्रतिशत पर नजर डालेंगे तो पाएंगे कि हमें बसपा से महज पांच फीसदी वोट कम मिले थे, लेकिन सीटों में दुगना अंतर था। यानी, हमसे केवल 2.5 फीसदी मतदाता ही नाराज थे, जिन्होंने बसपा को वोट दिया। 80 विधानसभा सीटें ऐसी थीं, जहां हमारे प्रत्याशी 5,000 से कम वोटों से हारे थे। इस बार बसपा से मतदाता बुरी तरह नराज हैं। इसका फायदा हमें एंटी इन्कम्बंसी वोटों के जरिए मिलेगा। लिहाजा पिछली बार मामूली वोटों से हारी इन सीटों के अलावा और सीटें भीं हम बसपा से हथिया लेंगे।
आप सरकार बनाने की बात कह रहे हैं, लेकिन बसपा कह रही है कि उनका मुकाबला तो कांग्रेस से है, सपा से नहीं?
वह तो जनता का ध्यान हटाने के लिए ऐसा कर रही है। वह ऐसा आज से बहुत पहले से कह रही हैं। मेरी नजर में तो कांग्रेस मुकाबले में है ही नहीं। अभी तो वो उठ ही नहीं पा रही है।
लेकिन, राहुल गांधी तो पार्टी को उठाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं।
उनकी कोशिश पर कांग्रेसी ही पलीता लगा रहे हैं। किसानों का हितैषी बनने के लिए उन्होंने भट्टा पारसौल से अलीगढ़ तक पदयात्रा निकाली। तब एक व्यक्ति का शव मिला और गांव की एक महिला से बलात्कार का मामला सामने आया तो कांग्रेस को पीछे हटना पड़ा। मैं पूछता हूं कि जब प्रदेश में भ्रष्टाचार, हत्या और लूट मची हुई थी, तब कांग्रेस कहां थी?
अन्ना फैक्टर का क्या असर होगा?
अन्ना हजारे भ्रष्टाचार का जो सवाल उठा रहे हैं, सपा उत्तर प्रदेश में यह सवाल साढ़े चार साल से उठा रही है। जब उन्होंने इस मुद्दे पर देश भ्रमण की बात कही तो सबसे पहले हमने उन्हें उत्तर प्रदेश में आमंत्रित किया, लेकिन वे नहीं आए। अब सुना है कि वे अच्छे प्रत्याशियों को जिताने के लिए प्रयास करेंगे। अगर अन्ना आधा घंटा भाषण देंगे तो इसमें 15 मिनट बसपा के भ्रष्टाचार पर बात होगी और 15 मिनट कांग्रेस पर। इन्हीं दोनों की सरकार है। अगर अन्ना कहते हैं कि जो भ्रष्टाचार नहीं कर रहा है उसे वोट दो, तो यह तो सीधे हमारे पक्ष में जाएगा।
आप भी नौजवान हैं, आपकी नजर में युवाओं की सबसे बड़ी समस्या क्या है?
बेरोजगारी मुख्य समस्या है। हम अनएम्प्लॉयड यूथ नहीं, अनएम्प्लॉयड फादर (बेरोजगार बाप)पैदा कर रहे है। नौजवानों की शादी तो हो रही है, लेकिन उन्हें नौकरी नहीं मिल रही। अभी हमें एक सर्वे के जरिए पता चला कि अकेले बरेली मंडल में ही तीन लाख नौजवान बीबीए और बीटेक करने के बाद बेरोजगार बैठे हैं, इसलिए हमें सस्ती शिक्षा के साथ-साथ राज्य में तेजी से औद्योगिक विकास करना होगा, ताकि पढ़े-लिखे नौजवानों को बेहतर रोजगार मिल सके।
आपके आदर्श कौन हैं?
गांधी, लोहिया और नेताजी मेरे आदर्श हैं. गांधी जी के विचार देश की आत्मा को समझने में मदद करते हैं तो लोहिया जी के विचार समाज के लिए कुछ कर गुजरने की प्रेरणा देते हैं।
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मनोरंजन 
इन फिल्मों ने तोड़ी बोल्डनेस की बाउंड्री
दिसंबर में रिलीज विद्या बालन की फिल्म ' डर्टी पिक्चर्स ' साउथ की फिल्मों में सेक्स सिंबल रही सिल्क स्मिता की जीवनी से प्रेरित है। फिल्म में विद्या बालन बहुत ही बोल्ड लुक्स और डायलॉग के साथ नजर आएंगी। इस फिल्म का प्रोमो इंटरनेट पर आने के हफ्ते के अंदर ही इसे 8 लाख से ज्यादा लोगों ने देखा और पसंद किया। बॉलिवुड में इससे पहले भी कई फिल्में आ चुकी हैं, जिन्होंने बोल्डनेस की बाउंड्री तोड़ी और फिल्म इंडस्ट्री को नए आयाम दिए। इनमें से कुछ तो बॉक्स आॅफिस पर चली भी नहीं लेकिन इनमें काम करने वाली ऐक्ट्रेस को जरूर एक नई पहचान और सेक्स सिंबल का टैग मिल गया। आइए एक नजर डालते हैं ऐसी ही कुछ फिल्मों पर- 
चेतना : 1970 में आई इस फिल्म में ऐक्ट्रेस रेहाना सुल्तान ने एक शराबी और बेबाक लड़की चेतना का रोल किया था। चेतना बिना किसी मजबूरी के सिर्फ अपने शौक पूरे करने के लिए वेश्यावृत्ति करती है, क्योंकि उसके मुताबिक यह पैसा कमाने का सबसे आसान तरीका है। फिल्म के एक सीन में चेतना का डायलॉग था - मुझे यह सब पसंद है, बहुत पसंद है। फिल्म को लेकर बाद में इतना विवाद हुआ कि रेहाना ने एक इंटरव्यू में कहा कि इस फिल्म ने मेरा करियर पूरी तरह बर्बाद कर दिया।
परोमा : अपर्णा सेन द्वारा निर्देशित 1984 में आई इस फिल्म में राखी ने एक अपर मिडिल क्लास की विवाहित महिला का रोल किया था, जो उम्र में खुद से काफी छोटे फोटॉग्रफर से इश्क कर बैठती है। हालांकि आज के लिहाज से यह उतनी विवाद को विषय नहीं है, लेकिन उस समय पश्चिम बंगाल के भद्रलोक में इस पर काफी बवाल मचा था। उसका आरोप था कि परोमा उनकी बहू - बेटियों की छवि को धूमिल कर रही है।
माया मेमसाब : 1993 में केतन मेहता ने विश्वविख्यात औपन्यासिक कृति मदाम बोवरी से प्रेरित इस फिल्म में अपनी वाइफ दीपा साही के साथ फिल्म इंडस्ट्री में स्ट्रगल कर रहे शाहरुख खान को कास्ट किया था। फिल्म की कहानी एक शादीशुदा लेडी की थी, जो अपनी शादी के बाहर अफेयर करती है। फिल्म में एक न्यूड सीन था जिसकी वजह से यह फिल्म काफी विवादों में रही।
फायर : समलैंगिक रिश्तों पर यह पहली भारतीय फिल्म थी। 1998 में आई दीपा मेहता की इस फिल्म में अपनी - अपनी शादियों से नाखुश देवरानी नंदिता दास और जेठानी शबाना आजमी के बीच शारीरिक संबंधों को दिखाया गया था। इस फिल्म का जबर्दस्त विरोध हुआ। सिनेमाघरों में लोगों ने जमकर तोड़ - फोड़ तक मचाई। लेकिन महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुरली मनोहर जोशी ने यह फिल्म देखने के बाद कहा था कि मैं इस फिल्म के निमार्ताओं को बधाई देता हूं, इस तरह का कॉन्सेप्ट हमारे कल्चर के लिए बिल्कुल नया है।
जिस्म : यह फिल्म भले ही ऐवरेज रही हो, लेकिन हॉट फिल्मों के एक सर्वे में इसे दुनिया की टॉप 100 फिल्मों में जगह मिली थी। फिल्म में बिपाशा अपने पति की दौलत पाने के लिए जॉन का सहारा लेती है। इस दौरान जॉन बिपाशा के बीच कई इंटीमेट सीन भी दिखाए गए। इन दोनों के बीच चुंबन का एक दृश्य बॉलिवुड के कुछ हॉट किसों में शुमार है। फिल्म के ऐक्टर जॉन अब्राहम ने खुद इस बात को स्वीकार किया था कि 2003 की इस फिल्म में उनकी और बिपाशा की हॉट केमिस्ट्री को कभी भी दोहराया नहीं जा सकता।
मर्डर : यह फिल्म 2004 यानी मोबाइल के दौर में आई। इस फिल्म में मल्लिका सहरावत और इमरान हाशमी का हॉट लव मेकिंग सीन फिल्म रिलीज होने से पहले ही इंटरनेट और युवाओं के मोबाइल फोन तक पहुंच गया था। रिचर्ड गेरे की फिल्म अनफेथफुल से इंस्पायर्ड इस फिल्म में मल्लिका सहरावत अपने एक्स बॉयफ्रेंड के साथ हमबिस्तर होती हैं। मल्लिका ने इस फिल्म में कुछ ऐसे सीन दिए थे , जो इंडियन स्क्रीन पर पहली बार देखे गए। फिल्म की कहानी तो नई नहीं थी लेकिन अपने बिंदास डायलॉग और हॉट सीन्स की वजह से यह खासतौर से युवाओं के बीच चर्चा का विषय बनी।  -दीप गंभीर
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