Saturday, 26 May 2012

मेरी मां की हत्या के लिए मुशर्रफ जिम्मेदार





एक न्यूज चैनल पर बेनजीर भुट्टों के बेटे ने लगाया आरोप
कहा- मुशर्रफ ने दी थी धमकी, कम करा दी थी सुरक्षा


न्यूयार्क। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष और बेनजीर भुट्टो के बेटे बिलावल भुट्टो जरदारी ने कहा है कि उनकी मां और पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या के लिए पाकिस्तान के तत्कालीन राष्टÑपति परवेज मुशर्रफ जिम्मेदार हैं। बिलावल ने सीएनएन को दिए एक साक्षात्कार में कहा उन्होंने (मुशर्रफ ने) मेरी मां (बेनजीर) की हत्या कराई। अपनी मां की हत्या के लिए मैं उन्हें जिम्मेदार मानता हूं।
यह पूछे जाने पर कि बिलावल ऐसा क्यों कह रहे हैं, उन्होंने कहा क्योंकि उन्हें (मुशर्रफ को) खतरे की जानकारी थी। खुद उन्होंने (मुशर्रफ ने) पूर्व में उन्हें (बेनजीर को) धमकी दी थी। उन्होंने कहा था कि आपकी सुरक्षा का सीधा संबंध हमारे रिश्तों और हमारे बीच सहयोग से है।
इन दिनों अमेरिका के दौरे पर आए बिलावल ने कहा जब उन्होंने आपातकाल लागू किया था और यह साफ हो गया था कि वह हमारी आंखों पर पर्दा डाल रहे हैं, तब वह पाकिस्तान में लोकतंत्र की वापसी बिल्कुल नहीं चाहते थे। मेरी मां ने उनके खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी और उनकी सुरक्षा घटा दी गई। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी योजना अगले चुनाव में बड़ी भूमिका निभाने और राजनीति में शामिल होने की है।
बिलावल ने कहा कि मैं पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी का अध्यक्ष हूं। पिछले चुनाव में मैंने प्रचार नहीं किया था। मैं विश्वविद्यालय चला गया था। मुझे नहीं लगता कि अभी मेरे पास सक्रिय भूमिका निभाने के लिए कोई जनादेश है। मैं अगले चुनाव में प्रचार करना और फिर बड़ी भूमिका निभाना चाहता हूं।
उनसे पूछा गया कि क्या वह कभी अपने देश के नेता बनना चाहेंगे। इस पर उनका जवाब था-मैं जिस तरह से भी अपनी जनता की मदद कर सकता हूं, करना चाहूंगा। पाकिस्तान में अभी बहुत कठिन समय है और हम सबको मदद करनी होगी। 
पाकिस्तान में उनकी सुरक्षा के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में बिलावल ने कहा कि उन्हें इसकी चिंता नहीं है। उन्होंने कहा मुझे पूरा विश्वास है कि पाकिस्तानी सरकार मुझे पर्याप्त सुरक्षा मुहैया कराएगी, उस सरकार की तरह नहीं जिसने पाकिस्तान में मेरी मां की सुरक्षा के साथ छेड़छाड़ की थी।

अपहरणकांड से फायदे में रहे नक्सली


-अपहरणों के दौरान सुरक्षाबलों की कार्रवाई बंद होने मिला लाभ
-छत्तीसगढ़ और ओडिशा में नक्सलियों ने बिछाया बड़ा बारूदी सुरंग
-केंद्रीय खुफिया एजेंसियों ने दी जानकारी


नई दिल्ली। केंद्रीय एजेंसियों की रिपोर्ट के अनुसार ओडिशा और छत्तीसगढ़ में हाल ही में हुए अपहरणों के दौरान सुरक्षाबलों की कार्रवाई बंद रहने का माओवादियों ने फायदा उठाते हुए दोनों ही राज्यों में बारूदी सुरंग का मजबूत जाल बिछा लिया। साथ ही आधुनिक हथियारों की खरीद और नये कैडरों की भर्ती भी की है।
खुफिया एजेंसियों से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि बंधक संकट के दौरान राज्य पुलिस और केंद्रीय अर्द्धसैनिक बलों ने नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई स्थगित कर दी थी। इस दौरान नक्सली बारूदी सुरंग का बड़ा जाल बिछाने में कामयाब हो गये। अधिकारी ने नक्सल प्रभावित राज्यों को केंद्रीय एजेंसियों की ओर से भेजी गई एक विशेष रिपोर्ट के हवाले से कहा कि माओवादियों ने छत्तीसगढ़ के नारायणपुर, बीजापुर, सरगुजा, बस्तर, दंतेवाडा, कांकेर और राजनंदगांव में अपनी स्थिति मजबूत की है। उन्होंने बताया कि रिपोर्ट में ओडिशा के बारे में उल्लेख है कि वहां के मल्कानगिरि, संबलपुर, रायगढ़, गजपति और देवगढ़ में नक्सलियों ने बारूदी सुरंगों का जाल बिछाया है। अधिकारी ने कहा कि इतालवी पर्यटकों पाओलो बोसुस्को और कादियो कोलंगो, बीजद विधायक झीना हिकाका और सुकमा के कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन के अपहरण से सुरक्षाबलों की नक्सल विरोधी कार्रवाई बाधित हुई।
उन्होंने बताया कि कार्रवाई स्थगित होने की स्थिति में नक्सलियों द्वारा नये कैडरों की भर्ती और बडेÞ पैमाने पर आधुनिक हथियार खरीदने की भी खबरें हैं।

यह होगी परेशानी

खुफिया विभाग का कहना है कि लगभग दो महीने तक नक्सलियों के खिलाफ कोई विशेष कार्रवाई नहीं की जा सकी। इससे अद्धसैनिक बलों को  भारी झटका लगा है। परेशानी की बात यह भी है कि खुफिया जानकारी एकत्र करने का स्थानीय तंत्र भी नक्सलियों की गतिविधियों पर नजर रखने में दिक्कत महसूस कर रहा है। बारूदी सुरंगें सुरक्षाबलों को नक्सलियों का पीछा करने में दिक्कत करेंगी। विशेषकर तब जब नक्सल किसी एक राज्य से दूसरे राज्य में भाग रहे हों और सुरक्षाबल उनका पीछा कर रहे हों।

हताहत होंगे जवान
खुफिया अधिकारी के मुताबिक जंगली रास्तों से माओवादी अच्छी तरह वाकिफ हैं और उन्हें मालूम होता है कि बारूदी सुरंग कहां बिछायी गई है। सुरक्षाबलों के लिए कुछ इलाके एकदम अनजान हैं और यदि वे किसी ऐसे इलाके से गुजरते हैं, जहां बारूदी सुरंग बिछी है तो बड़े पैमाने पर जवान हताहत हो सकते हैं।

पेट्रोल हुआ महंगा, तो कारें हुर्इं सस्ती


पेट्रोल का असर कम करने के लिए कंपनियों ने दी सौगात
पेट्रोल कारों पर 50 हजार तक की छूट

पेट्रोल के दामों में अब तक सबसे भारी वृद्धि के कारण कार कंपनियों ने ग्राहकों को राहत का मलहम लगाने के लिए पेट्रोल कारों पर भारी छूट का ऐलान किया है। मारुति सुजुकी, टाटा मोटर्स और ह्यूंदै मोटर ने अपने पेट्रोल कारों की खरीद पर 50 हजार रुपये छूट का आॅफर दिया है। हालांकि यह भारी छूट सीमित समय के लिए ही है। पेट्रोल की कीमतों में लगातार वृद्धि से लोग डीजल कारों की खरीद में ज्याद रूचि दिखाने लगे हैं। कंपनियों का मनना है कि इस छूट से ग्राहक आकर्षित होंगे और पेट्रोल कारों की लगातार गिरती बिक्री भी रूकेगी। मारुति सुजुकी इंडिया अपनी सबसे ज्यादा बिकने वाली कार आॅल्टो पर 30 हजार रुपये तक की छूट का आॅफर दे रही है। वहीं, टाटा मोटर्स ने इंडिका और इंडिगो के पेट्रोल कार पर 10 हजार से  50 हजार के छूट का आॅफर दिया है। इस प्रतियोगिता में भला ह्यूंदै मोटर क्यों पीछे रहे। कंपनी ने पेट्रोलन मॉडल की पूरी रेंज पर तीन हजार रुपये तक की  छुट का एलान किया है।
इनका कहना है---
बिक्री में आई कमी
हाल के महीनों में पेट्रोल के महंगा होने की वजह से एंट्री लेवल  कारों की बिक्री में कमी आई है। आॅल्टो की सेल्स कम हो रही है। हम बेस्ट सेलिंग कार की सेल्स को रफ्तार देने के लिए इस महीने के आखिर तक के लिए 30,000 रुपए का डिस्काउंट आॅफर करेंगे।
-मयंक पारिख, मैैनेजिंग एग्जेक्युटिव आॅफिसर, मारुति सुजुकी

50 हजार तक की छूट

हम इंडिया और इंडिगो के पेट्रोल वैरिएंट्स पर 10 से 50 हजार रुपए तक की छूट दे रहे हैं। नैनो पर हर महीने डिस्काउंट स्कीम चलती है। मई में इस पर 10,000 रुपए का डिस्काउंट दिया जा रहा है।
-प्रवक्ता, टाटा मोटर्स

पेट्रोल के दाम का असर कम करने की कोशिश

31 मई तक कंपनी सभी पेट्रोल कारों पर 3 हजार रुपए तक का डिस्काउंट दे रही है। कस्टमर्स को ईआॅन, सैंट्रो, आई-10, आई-20, एसेंट और वेर्ना पर डिस्काउंट मिलेगा। पेट्रोल प्राइस लॉक अश्योरेंस स्कीम, कस्टमर्स पर पेट्रोल के बढ़े दामों का असर कम करने की कोशिश है।
-अरविंद सक्सेना, मार्केटिंग एवं सेल्स डायरेक्टर, हुन्दे दै मोटर इंडिया लिमिटेड

टाट पहनने वाले बाबा की खबरों की ठाठ


                       -गहरा सकता है बाबा जय गुरुदेव की संपत्ति के उत्तराधिकार का हक


टाट पहनने वाले की ठाठ
-अरबों का बैंक बैलेंस, 150 करोड़ की कारें
-कुल 4 हजार एकड़ से ज्यादा जमीन
- हर माह 10-12 लाख दान में
-ट्रस्ट के नाम पर स्कूल और पेट्रोल पंप भी


मथुरा। 18 मई को में ब्रह्मलीन हुए बाबा जय गुरुदेव की संपत्ति को जो ब्यौरा लोगों के सामने आ रहा है, वह किसी आश्चर्य से कम नहीं है। बाबा की संपत्ति के अनुमान के मुताबिक बाबा 12 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का साम्राज्य छोड़ गए हैं। बाबा टाट के वस्त्र धारण करने की नसीहत देते थे, लेकिन उनकी संपत्ति से ठाठ का अंदाज लगाया जा सकता है। संभावना है कि अब इस  संपत्ति के उत्तराधिकार का विवाद गहरा सकता है। बाबा के आश्रम को हर महीने दस-बारह लाख रुपए का दान मिलता रहा है, इसमें पूर्णिमा, गुरु पूर्णिमा और होली के आयोजनों पर आने वाला दान शामिल नहीं है।
बाबा के ट्रस्ट के मथुरा में आधा दर्जन से ज्यादा बैंकों में खाते व मियादी जमा रुपये हैं। भारतीय स्टेट बैंक के मंडी समिति शाखा में एक अरब रुपए जमा होने के बारे में जानकारी मिल रही है। मियादी जमा भी कई अरब रुपयों का है।  अचल संपत्ति में ज्यादातर मथुरा-दिल्ली हाईवे पर एक तरफ साधना केंद्र से जुड़ी जमीनें हैं, तो दूसरी तरफ बाबा का आश्रम है। तीन सौ बीघे जमीन पर एक आश्रम इटावा के पास खितौरा में बन रहा है। एक अनुमान के मुताबिक बाबा के ट्रस्ट के पास चार हजार एकड़ से ज्यादा जमीन है। जय गुरुदेव के ट्रस्ट के नाम से मथुरा में स्कूल और पेट्रोल पंप भी हैं।  बाबा के आश्रम में दुनिया की सबसे महंगी गाड़ियों का काफिला है। इसमें पांच करोड़ से ज्यादा कीमत की लिमोजिन गाड़ी भी है। करोड़ों की प्लेमाउथ, ओल्ड स्कोडा, मर्सडीज बेंज और बीएमडब्ल्यू सहित तमाम गाडियों की कीमत 150 करोड़ के आसपास आंकी जा रही है।

7 साल की उम्र में हुए थे अनाथ

बाबा जय गुरुदेव के बचपन का नाम तुलसीदास था। उनकी जन्म तिथि के बारे में कोई प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। सात साल की उम्र में ही तुलसीदास के मां-बाप का निधन हो गया था। तभी से वह मंदिर-मस्जिद और चर्च जाने लगे। कुछ समय बाद घूमते-घूमते अलीगढ़ के चिरौली गांव पहुंचे। वहां घूरेलाल शर्मा को उन्होंने अपना गुरु बना लिया। दिसंबर 1950 में उनके गुरु नहीं रहे। बाबा जय गुरुदेव ने दस जुलाई 52 को बनारस में पहला प्रवचन दिया था।

जेल गए, संसद चुनाव हारे

29 जून 75 के आपातकाल के दौरान वे जेल गए, आगरा सेंट्रल, बरेली सेंटल जेल, बेंगलूर की जेल के बाद उन्हें नई दिल्ली के तिहाड़ जेल ले जाया गया। वहां से वह 23 मार्च 77 को रिहा हुए। 1980 और 90 के दशक में दूरदर्शी पार्टी बनाकर संसद का चुनाव लड़ा, लेकिन जीत हासिल नहीं हुई।

अवतारी नहीं खुद को कट्टर हिंदू कहते थे

जय बाबा गुरुदेव ने कोलकाता में पांच फरवरी 1973 को सत्संग सुनने आए अनुयायियों के सामने कहा था कि सबसे पहले मैं अपना परिचय दे दूं- मैं इस किराए के मकान में पांच तत्व से बना साढ़े तीन हाथ का आदमी हूं। इसके बाद उन्होंने कहा था- मैं सनातन धर्मी हूं, कट्टर हिंदू हूं, न बीड़ी पीता हूं न गांजा, भांग, शराब और न ताड़ी। आप सबका सेवादार हूं। मेरा उद्देश्य है सारे देश में घूम-घूम कर जय गुरुदेव नाम का प्रचार करना। मैं कोई फकीर और महात्मा नहीं हूं। मैं न तो कोई औलिया हूं न कोई पैगंबर और न अवतारी।

मथुरा में बना पहला आश्रम
गुरु के आदेश का पालन करते हुए बाबा जय गुरुदेव ने कृष्णानगर (मथुरा) में चिरौली संत आश्रम बनाया। बाद में नेशनल हाइवे के किनारे एक आश्रम बनवाया। नेशनल हाइवे के किनारे ही उनका भव्य स्मृति चिन्ह जय गुरुदेव नाम योग साधना मंदिर है। यहां दर्शन 2002 से शुरू हुआ था। नाम योग साधना मंदिर में सर्वधर्म समभाव के दर्शन होते हैं। इस समय आश्रम परिसर में ही कुटिया का निर्माण करा रहे थे।

Wednesday, 2 May 2012

आ केहू खराब नइखे, सबे ठीक बा...

आ केहू खराब नइखे, सबे ठीक बा... 

नीतीश के पहले दौर के शासन और अब के माहौल में खासा अंतर है। विकास की तेज रफ्तार पकड़ कर देश-दुनिया में नया कीर्तिमान रचने वाले राज्य के वर्तमान हालात जानने के लिए अप्रैल माह के अंतिम सप्ताह में घटित कुछ घटनाओं को देखना काफी होगा...

संजय स्वदेश
जब भी किसी राज्य की सरकार बदलती है, समाज की आबोहवा करवट लेती है। भले ही इस करवट से कांटे चुभे या मखमली गद्दे सा अहसास हो, परिर्वतन स्वाभाविक है। बिहार में नीतीश से पहले राजद का शासन था। जब लालू प्रसाद का शासनकाल आया था तब भी कमोबेश वैसे ही सकारात्मक बदलाव की सुगबुगाहट थी, जैसे नीतीश कुमार की सत्ता में आने पर हुई।
nitish-kumar
लालू के पहले चरण के शासनकाल में दबी-कुचली पिछड़ी जाति का आत्मविश्वास बढ़ा। उन्हें एहसास हुआ कि वे भी शासकों की जमात में शामिल हो सकते हैं, लेकिन धीरे-धीरे लालू के शासन से लोग बोर होने लगे। प्रदेश की विकास की रफ्तार जड़ हो गई। लोग उबने लगे। नई तकनीक से देश-दुनिया में बदलाव का दौर चला। बिहार की जड़ मनोदशा में भी बदलने की सुगबुगाहट हुई। जनता ने रंग दिखाया। राजद की सत्ता उखाड़कर नीतीश को कमान सौंपी।
नीतीश के पहले दौर के शासन और अब के माहौल में खासा अंतर है। विकास की तेज रफ्तार पकड़ कर देश दुनिया में नया कीर्तिमान रचने वाले राज्य की वर्तमान हालात जानने के लिए अप्रैल माह के अंतिम सप्ताह में घटित कुछ घटनाओं को देखिये।
गोपालगंज जिले के जादोपुर थाना क्षेत्र के बगहां गांव में पूर्व से चल रहे भूमि विवाद को लेकर कुछ लोगों ने एक अधेड़ की पीटकर हत्या कर दी। एक अन्य घटना में गोपालगंज जिले के ही हथुआ थाना क्षेत्र के जुड़ौनी नाम की जगह पर एक छात्र को रौंदने वाले जीपचालक को भीड़ ने मार-मार कर अधमरा कर दिया। जीप में आग लगा दी। अधमरे जीप चालक के हाथ-पांव बांधकर जलती जीप में फेंक दिया। तड़पते चालक ने आग से निकल कर भागने की कोशिश की तो भीड़ ने फिर उसे दुबारा आग में फेंक दिया। एक तीसरी घटना देखिये-गोपालगंज के ही प्रसिद्ध थावे दुर्गा मंदिर परिसर में आयोजित पारिवारिक कार्यक्रम में भाग लेने आई एक महिला का उसके दो मासूम बच्चों के साथ अपहरण कर लिया गया।
जिस तरह चावल के एक दाने से पूरे भात के पकने का अनुमान लगाया जा सकता है, उसी तरह से बिहार के एक जिले की इन घटनाओं से 'सुशासन' में प्रशासनिक व्यवस्था की पोल खुल जाती है। बिहार पर केन्द्रित 'अपना बिहार' नामक समाचार वेबसाइट पर प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार 25 अप्रैल को विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचार के अनुसार अलग-अलग घटनाओं में कुल 19 हत्या, 29 लूट और चोरी और दो बलात्कार की घटनाएं हुर्इं। जरा गौर करें, जिस समाज में एक ही दिन में 19 हत्या हो, भीड़ कानून को हाथ में लेकर एक व्यक्ति के हाथ-पांव बांध कर जिंदा आगे के हवाले कर दे, संपत्ति के लिए अधेड़ को पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दे, क्या ये मजबूत होते 'सुशासन' के लक्षण हैं।
सुनियोजित और संगठित आपराधिक कांडों के आंकड़े भले ही बिहार में कम हुए हैं, लेकिन आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने वाली क्रूरता जनमानस से निकली नहीं है। इन दिनों सबसे ज्यादा पचड़े किसी न किसी तरह से संपत्ति मामले को लेकर हैं।
लालू राज में बिहार की बदतर सड़कें कुशासन की गवाह होती थीं। अब यही सड़कें नीतीश के विकास की गाधा गाती हैं। इन सड़कों को रौंदने के लिए ढेरों नये वाहन उतर आए। आटो इंडस्ट्री को चोखा मुनाफा हुआ। सरकार की झोली में राजस्व भी आया, लेकिन सड़कों पर रौंदने वाले वाहनों के अनुशासन पर नियंत्रण कहां है। जितनी तेजी से सड़कें बनी हैं नीतीश के शासन में, उतनी ही तेजी से सड़क दुर्घटनाएं बढ़ीं हैं।
बिजली की समस्या बिहार के लिए सदाबहार रही। नीतीश के सुशासन में टुकड़ों-टुकड़ों में 6-8 घंटे जल्दी बिजली राहत तो देती है, लेकिन अभी यह बिजली किसी उद्योग को शुरू करने का भरोसे लायक विश्वास नहीं जगाती। विज्ञापन और सत्ता से अन्य लाभ के लालच में भले ही बिहार का मीडिया नीतीश के यशोगान में लगा है, लेकिन गांव के अनुभवी अनपढ़ बुजुर्गों से नीतीश और लालू के राज की तुलना में कौन अच्छा है, पूछने पर चतुराई भरा जवाब मिलता है- ...आ केहू खराब नइखे, सबे ठीक बा...।