Thursday, 7 February 2013

जहां आग में नहीं जलती मुर्दों की टांग!


सूरजबानी।
गुजरात के कच्छ के रन में बनने वाला नमक देश की करीब 75 फीसदी नमक की जरूरत को पूरा करता है, लेकिन बहुत कम लोगों को इस कारोबार में लगे अगड़िया समुदाय के नमक मजदूरों की त्रासदी का भान है। ये मजदूर जिंदगी भर नमक बनाते हैं और अंत में मौत के बाद इन्हें नमक में ही दफन कर दिया जाता है। नमक मजदूरों के जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि नमक में लगातार काम करने के कारण इनकी टांगे असामान्य रूप से पतली हो जाती हैं और इस कदर सख्त हो जाती हैं कि मौत के बाद चिता की आग भी उन्हें जला नहीं पाती। नमक के खेतों में काम करने वाले मजदूर बताते हैं कि इसलिए चिता की आग बुझने के बाद इनके परिजन इनकी टांगों को इकट्ठा करते हैं और अलग से नमक की बनाई गई कब्र में दफन करते हैं ताकि वे अपने आप गल जाएं। अहमदाबाद से 235 किलोमीटर और कच्छ जिला मुख्यालय से 150 किलोमीटर दूर स्थित सूरजबारी अरब सागर से मात्र दस किलोमीटर की दूरी पर है। गुजरात के पर्यटन अधिकारी मोहम्मद फारूक पठान ने बताया कि समुदाय के लोग यहां सदियों से रह रहे हैं और जीविका के रूप में उन्हें केवल यही काम आता है, नमक बनाना। यहां का भूजल समुद्री जल के मुकाबले दस गुना अधिक नमकीन है। इस भूजल को नलकूपों से निकाला जाता है और उसके बाद उस पानी को 25 गुना 25 मीटर के छोटे छोटे खेतों में भर दिया जाता है।’ उन्होंने बताया, ‘जब सूरज की किरणें इस पानी पर पड़ती हैं तो यह धीरे धीरे सफेद नमक में बदल जाता है ।’

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